बार एसोसिएशन ने यह कहते हुए अपना ऑब्जेक्शन दर्ज कराया कि यह समन अनुच्छेद 19 (1) (जी) और अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त वकालत के मौलिक अधिकार और एडवोकेट्स एक्ट, 1961 में एक अकल्पनीय और अपमानजनक हस्तक्षेप हैं.

SUPREME COURT : सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ तौर पर कहा कि जांच एजेंसी किसी मामले में पेश हो रहे वकील को मामले का विवरण जानने के लिए सीधे तौर पर समन जारी नहीं कर सकती है.
क्या कहा कोर्ट ने : कोर्ट ने मामले की गंभीरता को लेते हुए कहा कि यदि वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार के अपवादों का हवाला देते हुए किसी वकील को समन जारी किया भी जाता है, तो उसके लिए एक वरिष्ठ अधिकारी, जो पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे का न हो, की पूर्व लिखित स्वीकृति अनिवार्य होगी, जिसमें समन का कारण दर्ज होना चाहिए और साथ ही अदालत यह भी साफ तौर पर कहती हैं कि कंपनियों में पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी के तौर पर काम करने वाले “इन-हाउस वकील” भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 की धारा 132 के तहत वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार के हकदार नहीं होंगे.
क्या था मामला : एक वकील द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की, जिसमे अहमदाबाद के ओधव पुलिस स्टेशन में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), गुजरात मनी-लेंडर्स एक्ट और एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई थी और इस मामले से सम्बंधित वकील ने आरोपी के लिए नियमित जमानत याचिका दायर की, जिसे सेशंस जज ने मंजूर कर लिया. जांच अधिकारी ने वकील को BNSS की धारा 179 के तहत एक नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें पूछताछ के बाद मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का सही विवरण जानने’ के लिए पेश होने का निर्देश दिया गया. जिसके बाद से ही मामले ने रंग ले लिया. जिसको लेकर वकील ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तभी हाई कोर्ट ने मामले को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि उनके असहयोग से जांच बाधित हो रही थी. अब मामला SLP में सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका था, जिसमे यह माना गया कि इस तरह का हस्तक्षेप न्याय प्रशासन पर सीधा आघात है और मामले को व्यापक निर्णय के लिए एक बड़ी पीठ को संदर्भित कर दिया.
जिसके बाद ही बार एसोसिएशन ने यह कहते हुए अपना ऑब्जेक्शन दर्ज कराया कि यह समन अनुच्छेद 19 (1) (जी) और अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त वकालत के मौलिक अधिकार और एडवोकेट्स एक्ट, 1961 में एक अकल्पनीय और अपमानजनक हस्तक्षेप हैं.
क्या कहती हैं राज्य : इस गंभीर मामले पर राज्य ने तर्क दिया कि किसी नए दिशानिर्देश की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मौजूदा वैधानिक प्रावधान (BSA की धारा 132-134) स्पष्ट हैं और समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं धारा 132 के परंतुक के तहत दिए गए अपवाद (जैसे किसी अवैध उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए संचार, या अपराध /धोखाधड़ी का अवलोकन) पर्याप्त थे और यह भी कहा गया कि वकीलों के लिए एक अलग प्रक्रिया बनाने से एक अलग वर्ग बन जाएगा, जो अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, और विशाखा मामले के विपरीत, यहाँ कोई विधायी शून्यता नहीं है जिसे भरने की आवश्यकता हो.
क्या तर्क था सुप्रीम कोर्ट का : धारा 132 मुवक्किल को दिया गया एक विशेषाधिकार है, जो एक वकील को किसी भी पेशेवर संचार का खुलासा नहीं करने के लिए बाध्य करता है. यह “वकील को मिली एक छूट” है जिसे वह मुवक्किल की ओर से लागू कर सकता है. अदालत ने कहा कि यह विशेषाधिकार अनुच्छेद 20 (3) के तहत मुवक्किल के आत्म-दोषारोपण के खिलाफ संवैधानिक संरक्षण का ही एक विस्तार है. साथ ही अदालत कहती है डिजिटल उपकरण को केवल पक्षकार और वकील की उपस्थिति में ही खोला जाएगा, जिन्हें अपनी पसंद के डिजिटल तकनीक विशेषज्ञ की सहायता प्राप्त करने में सक्षम बनाया जाएगा. अदालत को यह भी ध्यान रखना होगा कि वकील के अन्य मुवक्किलों के संबंध में गोपनीयता भंग न हो व अदालत ने स्पष्ट किया कि इन-हाउस वकील धारा 132 के तहत विशेषाधिकार के हकदार नहीं होंगे.
निर्णय के कुछ अहम पॉइंट्स: निर्णय की कुछ अहम बाते एक जांच अधिकारी किसी आरोपी का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील को मामले का विवरण जानने के लिए तब तक समन जारी नहीं करेगा, जब तक कि यह धारा 132 BSA के अपवादों (जैसे किसी अवैध उद्देश्य को आगे बढ़ाना) के अंतर्गत न आता हो. जब किसी अपवाद के तहत समन जारी किया जाता है, तो उसमें उन तथ्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए जिन पर अपवाद आधारित है. ऐसा समन पुलिस अधीक्षक (SP) के पद से नीचे के किसी वरिष्ठ अधिकारी की सहमति से जारी किया जाना चाहिए, जो समन जारी करने से पहले अपनी संतुष्टि को लिखित रूप में दर्ज करेगा. इस प्रकार जारी किया गया कोई भी समन वकील या मुवक्किल द्वारा BNSS की धारा 528 के तहत न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा. दस्तावेजों और डिजिटल उपकरणों को (10 के बजाय) अदालत के समक्ष पेश करने के लिए निर्देश दिए गए, जिसमें डिजिटल उपकरणों की जांच के लिए विशिष्ट सुरक्षा उपाय शामिल हैं. यह घोषित किया गया कि इन-हाउस वकील BSA की धारा 132 के तहत विशेषाधिकार के हकदार नहीं हैं.
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