न्यायिक प्राधिकरण ही लंबित मामलों में दोषी या निर्दोष होने के बारे में अंतिम निर्णय ले सकता है, कोर्ट की यह टिप्पणी मीडिया जगत के लिए अहम मानी जा रही है.
KERALA HC: गुरुवार को पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मीडिया को लेकर एक अहम फैसला सुनाया केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता गरिमा, प्रतिष्ठा और निजता के व्यक्तिगत अधिकारों को प्रभावित नहीं करती है. आपको बता दे HC के इस फैसले मे इस पर ध्यान दिया गया कि आपराधिक मामलों में प्रेस जांच एजेंसियों या न्यायिक अधिकारियों की भूमिका नहीं निभा सकता.
रिपोर्टिंग में व्यक्ति के निजता का हो सम्मान : केरल हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी रिपोर्टिंग में व्यक्ति के निजता के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए और शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए. साथ ही यह भी कहा गया कि केवल एक न्यायिक प्राधिकरण ही लंबित मामलों में दोषी या निर्दोष होने के बारे में अंतिम निर्णय ले सकता है, कोर्ट की यह टिप्पणी मीडिया जगत के लिए अहम मानी जा रही है.
कोर्ट ने प्रकाश डाला : प्रेस के पास आपराधिक मुकदमों और जांचों पर सटीक रूप से रिपोर्ट करने का संवैधानिक और कानूनी अधिकार है, लेकिन उसे ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे निष्पक्ष सुनवाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े या संबंधित पक्षों की गरिमा और निजता का उल्लंघन हो.
अदालत ने कहा कि : मीडिया परीक्षण जो आधिकारिक अदालती फैसले से पहले किसी संदिग्ध या आरोपी को दोषी या निर्दोष के रूप में पेश करते हैं, नैतिक सावधानी और निष्पक्ष टिप्पणी की सीमाओं को पार करते हैं.
कोर्ट की निर्णायक टिप्पणी : न्यायालय ने मीडिया से आग्रह किया कि वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को स्वीकार करे तथा स्वयं के लिए एक ‘लक्ष्मण रेखा’ स्थापित करे, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी रिपोर्टिंग के परिणामस्वरूप मीडिया ट्रायल न हो, जिससे न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्षता तथा इसमें शामिल लोगों की गोपनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।