संविधान की प्रमुखता

संविधान सभा की अंतिम बैठक 25 नवंबर 1949 को बाबा साहब ने अपने भाषण में कहा था की भारत का संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर इसे अमल में लाने वाले लोग खराब निकले, तो संविधान निश्चित रूप से अच्छा साबित नही होगा।

आज संविधान दिवस है, हर जिंदा, इंसाफ परस्त और स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों के सपनो के भारत के निर्माण में योगदान देने वालो के लिए प्रेरणा का दिन है। आज के ही दिन समाज के अंतिम व्यक्ति को सही मायनों में द्वितीय आजादी मिली थी। भारत के संविधान की जीवंत संविधान कहा गया की जिसमे सिर्फ प्रस्तावना को छोड़ कर संविधान के हर पन्ने पर बदलाव किया जा सकता है।
जिस तरीके से आज माफीनामे वाले दक्षिण पंथियों द्वारा संविधान के मूल ढांचे पर हमले हो रहे है, वो कही न कही संविधान निर्माता और हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदानों पर कुठाराघात है। संविधान सभा की अंतिम बैठक 25 नवंबर 1949 को बाबा साहब ने अपने भाषण में कहा था की भारत का संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर इसे अमल में लाने वाले लोग खराब निकले, तो संविधान निश्चित रूप से अच्छा साबित नही होगा।
तत्कालीन सरकारों ने 26वे संविधान संशोधन में राजा रजवाड़ों को मिलने वाले मुआवजे जिसे प्रिवी पर्स को समाप्त कर दिया गया।
1976 में 42वा संविधान संशोधन कर भारत के संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द जोड़कर दलितों, अल्पसंख्यकों और मजलूमों के अधिकारों पर किसी प्रकार की आंच न आने देने के लिए पुख्ता इंतजाम किया गया।
दक्षिण पंथियों द्वारा समय समय पर संविधान पर हमले और संविधान को बदलने की कोशिशें होती रही है जैसे 22 फरवरी 2000 को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने भी संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए न्यायमूर्ति मनेपल्ली नारायण राव वेंकटचलैया आयोग का गठन संविधान में संभावित संशोधनों का सुझाव देने के लिए किया था। जिसने 2002 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी और जिस पर लोक सभा और राज्य सभा में सरकार को भारी विरोध झेलना पड़ा और 2004 में एनडीए सरकार की विदाई हो गई।
26 जनवरी 2015 में तत्कालीन सरकार द्वारा समाचार पत्रों में संविधान की प्रस्तावना को प्रकाशित करवाया गया जिसमे से सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द गायब थे। किरकिरी होने पर सरकार ने सफाई देते हुए इसे मानवीय भूल बताया था। 2015 में ही तत्कालीन दूरसंचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था संविधान की प्रस्तावना में हमे सेकुलर शब्द की जरूरत नहीं है हम सेकुलर शब्द के बिना भी सेकुलर देश है।
9 अगस्त 2018 को पार्लियामेंट स्ट्रीट पर बाबा साहब को अपमानित करने करने का काम किया गया और संविधान की प्रतियां जलाई गई। वो कौन लोग थे? और किसके इशारे पर उन्होंने इस कृत्य को अंजाम दिया था?
5 साल से ज्यादा बीतने एक बाद भी अभी तक जांच ही चल रही है। कुछ महीनो पहले ही दिल्ली की एक कोर्ट ने पुलिस की लचर जांच को लेकर फटकार भी लगाई थी।
मार्च 2020 को बीजेपी के राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा राज्य सभा में एक रेजोल्यूशन लेकर आए की संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद शब्द हटा देना चाहिए।
18 अगस्त 2023 को इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन बीबेक देब रॉय ने कहा की एक नए संविधान का समय आ गया है।
फैजाबाद के तत्कालीन बीजेपी सांसद और प्रत्याशी लल्लू सिंह ने अंबेडकर जयंती के दिन 14अप्रैल 2024 को कहते है कि सरकार तो 272 में भी बन जाती है पर संविधान में संशोधन और नए संविधान के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है।
22 सितंबर को कन्याकुमारी में एक कार्यक्रम के दौरान तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने धर्मनिरपेक्षता पर बयान दिया जिसमे उन्होंने कहा था कि “धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा” है और भारत को इसकी जरूरत नहीं। उनको स्पष्ट करना चाहिए कैसा होगा ये नया संविधान? बाबा साहब द्वारा दिए हुए संविधान से क्या दिक्कत है उनको? किसकी शह पर इतने बड़े पद पे बैठा आदमी नए संविधान की बात कर रहा है?
बीजेपी नेता अश्वनी उपाध्याय, सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिसमें उन्होंने संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्द हटाने को लेकर याचिका दायर की थी, जबकि संविधान पीठ अपने पूर्व के आदेश में कह चुका है कि संविधान की संरचना से छेड़ छाड़ नहीं हो सकता है तब भी बीजेपी नेताओं की याचिका को स्वीकार किया गया और चार साल तक सुनवाई भी चली खैर इस संक्रमण काल में भी सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखा और चीफ जस्टिस की बेंच ने याचिका को खारिज कर संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर लोगो के बीच संविधान के इकबाल को स्थापित किया है। हम सभी को उन संविधान विरोधी दक्षिण पंथी ताकतों की मजम्मत करनी चाहिए क्योंकि जबतक संविधान सुरक्षित है तभी तब सभी वंचितों के हक और अधिकार सुरक्षित है।
तुम्हारे हर तकलीफों का एक मुकम्मल जवाब हूं मैं।
कभी वक्त मिले तो मुझे अवश्य पढ़ना, भारत का #संविधान हूं मैं।
देश के खातिर संविधान की सुनिए।

लेखक के अपने विचार हैं……..

Dr. Robin Verma

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