कहते हैं कि समाचार पत्र एक प्रचण्ड शक्ति है, जिस तरह निरंकुश जल का प्रवाह गाँव डुबो देता है और सारी फसल का नाश कर देता है, उसी तरह निरंकुश लेखनी का प्रवाह भी सर्वनाश का सृजन करता है। भारतीय संविधान का आर्टिकल-19 बोलने की आज़ादी देता हैं। एक लोकतांत्रिक देश में चौथे स्तम्भ को भी दबाया नहीं जा सकता। चौथे स्तम्भ की क्या भूमिका होनी चाहिए? क्या चौथे स्तम्भ को असीमित अधिकार मिलते हैं?

भारतीय संविधान ने शक्ति प्रथक्करण यानी सेपेरेशन्स ऑफ पॉवर के सिद्धांत को फॉलो किया यानी विधायिका, न्यायपालिका व कार्यपालिका की शक्ति को अलग-अलग हिस्सो में बांट दिया हैं इसका मतलब हैं, हर बॉडी को उसके दायरे में काम करने छूट दी गयी है। तो फिर सवाल ये हैं कि चौथे स्तम्भ का दायरा क्या होगा? आखिर एक मीडिया संस्थान या एक पत्रकार का दायरा क्या हैं? क्या उन्हें असीमित अधिकार मिलते हैं? लेकिन भारतीय संविधान भी किसी को असीमित अधिकार तो देता नहीं। आगे बढ़ते हैं और बता दें लोकतांत्रिक देश में चौथे स्तम्भ के योगदान को नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। पर क्या चौथे स्तम्भ को भी दायरे मे बांधा जा सकता हैं? यदि हां तो कैसे? बताते चलें पत्रकारिता भी आचार संहिता, कानून, प्रेस आयोग, प्रेस परिषद और अन्य आचरण से बंधी होती हैं। अक्सर दिखायी गयी ख़बर पर भी मीडिया एथिक्स को लेकर भी सवाल उठता रहता हैं।
पत्रकार व पत्रकारिता का दायरा: पत्रकार को बोलने या लिखने आदि की आज़ादी हमारा संविधान देता हैं, पर यह आज़ादी असीमित नहीं। उसी संविधान में बोलने की आज़ादी पर रोक का भी प्रावधान हैं। फिलहाल ये बात तो साफ हैं कि कुछ कंडिशन्स के साथ इस पर भी रोक लगायी जा सकती हैं। यह तो हो गया कानूनी रोक प्रावधान तो सवाल अभी भी वही हैं कि क्या पत्रकार की आवाज़ को किसी सीमा में बांधा जा सकता हैं? अगर उत्तर हां हैं तो वह कितनी मात्रा में या इसके नाप का तरीका क्या होने वाला हैं। फिलहाल आगे बढ़ते हैं और समझेंगे की कोशिश करेंगे कुछ इन्हीं सवालों को।
क्या अनुशासन एक दायरा: जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्व है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः हर मनुष्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह जो भी काम करे उसमें समाज के अन्य लोगों का भी ध्यान रखे यानी उसके काम से किसी दूसरे व्यक्ति पर कोई विपरीत या उल्टा प्रभाव न पड़े। यदि कोई भी व्यक्ति ऐसा कार्य करता है तो उसे सही राह दिखाने के लिये नियम व कानून का सहारा लेना पड़ता हैं। तो क्या केवल नियमों का पालन कर समाज में योगदान दिया जा सकता हैं यदि हां, तो समाज अधूरा सा प्रतीत होता हैं। लेकिन इसके अलावा यह भी ज़रूरी है कि समाज के लोग स्व:अनुशासन के द्वारा समाज के हित का ध्यान रखें। स्व:अनुशासन का मतलब स्वयं ही सही-गलत का विश्लेषण करके सही राह का चयन करना ही एक प्रकार से सबसे आदर्श आचार संहिता है। जिसका पालन प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य भी है। फिलहाल पत्रकार को दुनिया की आँख और कान कहा जाता है। वह खुली आँखों तथा मन से संसार में घटने वाली घटनाओं को देखता है, महसूस करता है और जनता तक पहुंचाता हैं। इस सराहनीय काम के लिए हर पत्रकार को सलाम जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
क्यों मॉरल ड्यूटी ज़रूरी : एक पत्रकार को वाक् और अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है यानी नैतिकता के नियमों का पालन करते हुए वह उन सभी मुद्दों को उठाना ज़रूरी समझे जो सीधे जनता से ज़ुड़े हुए हैं। यह सहीं हैं कि लोकतान्त्रिक देश में किसी भी पत्रकार या मीडिया हाऊस की जिम्मेदारी अहम हो जाती हैं और इस जिम्मेदारी में मानवता या यूं कहें नैतिक नियम खोए हुए प्रतीत होते हैं। चलिए इसे कुछ उदाहरण से समझते हैं। कोई चिकित्सक, अध्यापक, कर्मचारी, वकील, दुकानदार या कोई भी अन्य व्यवसायी हो, उसे अपने व्यवसाय से सम्बन्धित एक निश्चित मानदण्डों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है। जैसे दुकानदार मिलावटी सामान न बेचे या अधिक कीमत न वसूले, अध्यापक मनोयोग से विद्यार्थियों को पढ़ाये, वकील अपने मुवक्किल की जानकारी गुप्त रखे व उसे ब्लैकमेल न करे। इसी तरह चौथे स्तम्भ का दायित्व निभाने वाले पत्रकार की समाज में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उसे एक वकील की तरह तथ्यों का विश्लेषण करना होता है। जज की तरह निष्पक्ष व सही निर्णय तक पहुंचना होता है। चिकित्सक की तरह समाज में व्याप्त व्याधि के निवारण का प्रयास करना होता है। अध्यापक की तरह अध्ययन के आधार पर समाज को जागृत करना होता है तथा पुलिस की तरह असामाजिक तत्वों को बेनकाब करना होता है।
पत्रकार या किसी भी संस्था द्वारा दिये जाने वाली खबर से पूरा समाज प्रभावित होता है और यदि इन समाचारों में किसी प्रकार की गलती हो तो अवश्य समाज को प्रभावित होने का ख़तरा बना रहता हैं। तो एक पत्रकार के ऊपर भी उन नैतिक नियमों के साथ ख़बरों को परोसने की बाध्यता होती हैं, जो सीधे जनता से जुड़े हुए हों। इसलिए यह कहीं ज़रूरी बन जाता हैं उन नियमों का पालन करना जो चौथे स्तम्भ के आधारभूत ढ़ांचे को प्रभावित कर सकते हैं। अब सवाल हैं कि क्या हैं ये नैतिक नियम? फिलहाल आगे बढ़ते हैं और हर उस पत्रकार को नमन जो खबर को कड़ी मेहनत व ईमानदारी के साथ ज़नता को परोसते हैं।
क्या हैं नैतिक नियम : ऐसे में सवाल इस बात का भी हैं कि क्या हैं ये नैतिक नियम? समाज के हित को साधते हुए परोसी गयी खबर जिससे समाज के नकारात्मक होने का खतरा कम किया जा सके। फिलहाल साधारण भाषा में इसे समझे तो समाचार के सत्य, संतुलित, तथ्यपरक, साथ ही मर्यादा की सीमा के भीतर होना आदि को ही नैतिक नियमों के तहत माना जाता हैं। चाहे एक समाचार पत्र हो या न्यूज चैनल, यह पूरे परिवार द्वारा देखा व पढ़ा जाता है। अगर देखा जाय तो अक्सर चैनल में समाचार परिवारजन एक साथ ही देखते हैं इसलिये यह और भी ज़रूरी हो जाता हैं कि समाचार की भाषा तथा दर्शाए गए तथ्य हिंसा, घृणा, अश्लीलता इत्यादि फैलाने वाले न हों। सत्यता, निष्पक्षता, ईमानदारी तथा शिष्ट भाषा का प्रयोग ही हर न्यूज़ चैनल की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। जिस तरह भारतीय संविधान में बोलने की आज़ादी को आधारभूत ढ़ाचे यानी बेसिक स्ट्रक्चर का भाग माना जाता हैं, उसी तरह नैतिक नियम भी चौथे स्तम्भ का बेसिक स्ट्रक्चर माना जाना चाहिए।
क्यों सोशल मीडिया पर सवाल : ऐसे में एक सवाल उनके लिए जो मात्र यूट्यूब पर अकाउंट बनाकर एथिक्स के सवाल से दूर दिखायी देते हैं जी हां कुछ ऐसी ही बड़ी घटना पर देखने को मिलता हैं जैसे : भगदड़, रेल हादसा, भूकंप जैसी प्रकृतिक घटना में भी वीडियों का चलन किसी से छिपा नहीं हैं। जिसे सोशल मीडिया पर वायरल मात्र के लिए अकाउंट की पॉपुलरिटी बढ़ाने को लेकर सवाल किसी से छिपे नहीं हैं। क्या हर उस नागरिक की यह ड्यूटी नहीं जिसने अपने मोबाइल का कैमरा ऑन कर रखा हैं कि उसे किस घटना का वीडियों बनाना हैं या किस वीडियों को वायरल करना हैं। अगर हर उस नागरिक को बोलने या लिखने की आज़ादी हैं, तो उसे हर उस व्यक्ति को मानवता को ऊपर रख अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए।
क्या हैं प्रेस काउन्सिल के सिद्धान्त : समाचार लिखने में सजगता व संयम बरतना तथा हिंसा, अश्लीलता, तनाव को अंकुश में रखना। प्रेस जनमत निर्माण का बुनियादी साधन है, अतः पत्रकारों को अपना कार्य एक न्यास (ट्रस्ट) के रूप में समझना चाहिए। उन्हें जनहित का ध्यान रखते हुए कार्य करना चाहिए, समाचार के गलत होने पर भूल सुधार करना व इस पर खेद जताना। लोगों के निजी जीवन को प्रभावित करने वाली अफवाहें फैलाने वाले समाचारों का प्रकाशन न करना। प्रेस काउन्सिल द्वारा बताये गये यह कुछ सिद्धान्त जिसे फॉलों कर एक लोकतांत्रिक देश में मीडिया की एकता और चौथे स्तम्भ की प्रमुखता को बनाये रखने में सहायक सिद्ध होगी।