इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, लखनऊ पीठ ने फैसले में कहा कि कोई भी मुस्लिम व्यक्ति पत्नी के रहते ‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता.

MUSLIMS LIV IN RELATIONSHIP JUDGEMENT : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, लखनऊ पीठ ने फैसले में कहा कि कोई भी मुस्लिम व्यक्ति पत्नी के रहते ‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता.
याचिका में सुरक्षा मांगी गयी थी : अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस्लाम इस तरह के संबंध की इजाजत नहीं देता. इस मामले को लेकर स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब खान द्वारा एक रिट याचिका दाखिल की गयी थी, इस याचिका में दोनों यानी लिव इन रिलेशन में रहने वाले कपल ने अपने खिलाफ प्राथमिकी को रद्द कराने के अनुरोध के साथ ‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने के दौरान सुरक्षा मुहैया कराने का भी अनुरोध किया था.
क्या कहा अदालत ने : आदेश के दौरान अदालत ने कहा कि रूढ़ियां व प्रथाएं भी विधि के समान श्रोत हैं और संविधान का अनुच्छेद 21 ऐसे रिश्ते के अधिकार को मान्यता नहीं देता, जो रूढ़ियों व प्रथाओं से प्रतिबंधित हो. अदालत पुलिस को आदेश देती हैं, कि स्नेहा देवी को सुरक्षा में उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया जाए, अदालत ने साथ ही साथ अनुच्छेद 13 का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद 13 रूढ़ियों और प्रथाओं को भी कानून मानता है. अदालत आगे कहती हैं कि चूंकि इस्लाम शादीशुदा मुसलमान व्यक्ति को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने की इजाजत नहीं देता अतः याचिकाकर्ताओं को ‘लिव इन रिलेशन’ में रहने के दौरान सुरक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं है.
प्राथमिकी को रद्द कराने का किया गया अनुरोध : दोनों याचिकर्ता का कहना था कि वे बालिग हैं और अपनी मर्जी से ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में रह रहे हैं. उसके बाद भी लड़की के अपहरण का मामला बहराइच के विशेश्वरगंज थाने में दर्ज कराया गया, दाखिल की गयी इसी याचिका में उक्त प्राथमिकी को चुनौती दी गई थी और मांग की गयी थी, कि याचिकाकर्ताओं के शांतिपूर्ण जीवन में दखल न दिए जाने का आदेश पारित करने का अनुरोध किया गया था.