संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) के तहत मिले किसी भी पेशे या व्यापार को करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. इसमें याचिकाकर्ता का कहना है कि उनका व्यवसाय एक महीने से अधिक समय से पूरी तरह से बंद है.

SUPREME COURT : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को ‘प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग एक्ट, 2025’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली मुख्य याचिकाओं पर एक विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
क्या था मामला : केंद्र सरकार का यह कानून ऑनलाइन मनी गेम्स पर प्रतिबंध लगाता है. यह कानून रियल-मनी ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला केंद्रीय कानून है. आपको बता दे इसमें दांव लगाकर खेले जाने वाले फैंटेसी स्पोर्ट्स और ई-स्पोर्ट्स भी शामिल हैं. इसमें याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम उन गेम्स पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध लगाता है, जिन्हें न्यायिक रूप से कौशल-आधारित गेम्स के तौर पर मान्यता दी गई है. उनका कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) के तहत मिले किसी भी पेशे या व्यापार को करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. इसमें याचिकाकर्ता का कहना है कि उनका व्यवसाय एक महीने से अधिक समय से पूरी तरह से बंद है.
क्या कहा कोर्ट ने : बेंच ने केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल को निर्देश दिया कि वे अंतरिम राहत के बजाय सीधे मुख्य याचिका पर ही एक विस्तृत जवाब दाखिल करें. साथ ही बेंच ने कहा हम चाहते हैं कि संघ की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मुख्य याचिका पर ही एक विस्तृत जवाब दाखिल करें. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि ‘सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमिक चेंज’ और शौर्य तिवारी द्वारा दायर एक अलग याचिका पर भी 26 नवंबर को ही सुनवाई होगी. इस याचिका में “सोशल और ई-स्पोर्ट्स गेम्स की आड़ में” कथित रूप से चल रहे ऑनलाइन जुआ और सट्टेबाजी प्लेटफार्मों पर रोक लगाने की मांग की गई है.



