सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि संविधान के तहत राज्यों के पास मौलिक अधिकार नहीं हैं, इसलिए वे अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर नहीं कर सकते.

SC: राज्य सरकारों का राज्यपाल या राष्ट्रपति सम्बन्धी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट मे बहस के दौरान केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य सरकारें संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपालों के विधेयकों पर किए गए निर्णयों को चुनौती देने के लिए रिट अधिकार क्षेत्र का सहारा नहीं ले सकतीं.
केंद्र सरकार ने रखा पक्ष : सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि संविधान के तहत राज्यों के पास मौलिक अधिकार नहीं हैं, इसलिए वे अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर नहीं कर सकते.
राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर सहमति देने या उसे रोकने की कार्रवाई न्यायालय के दायरे में नहीं आती. अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपालों को अपने संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में की गई कार्रवाई के लिए न्यायिक कार्यवाही से छूट प्राप्त है, इसलिए उन पर न्यायालय कोई निर्देश जारी नहीं कर सकता.
आपको बता दें यह सुनवाई मई 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए संदर्भ का हिस्सा है, जिसमें उन्होंने यह राय मांगी थी कि क्या न्यायालय राष्ट्रपति या राज्यपालों को विधेयकों पर कार्रवाई के लिए समयसीमा तय कर सकता है.
क्या कहते हैं तुषार मेहता : राष्ट्रपति ने भविष्य के लिए कानूनी स्थिति स्पष्ट करने हेतु सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है. न्यायालय में सॉलिसिटर जनरल ने 8 अप्रैल को दिए गए तमिलनाडु संबंधी फैसले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि राज्यपाल समयसीमा में विधेयकों पर कार्रवाई नहीं करते तो राज्य सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. मेहता ने तर्क दिया कि एक संवैधानिक अंग की निष्क्रियता दूसरे पर न्यायिक निर्देश देने का आधार नहीं हो सकती. आपको बताते चले अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए संदर्भ पर सुनवाई हो रही है. लेकिन अभी मामले को लेकर सवाल बरकरार.
।
क्या