दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि पहले, यूपी बार काउंसिल नामांकन के लिए ₹16,500 लेती थी. फैसले के बाद राशि को वैधानिक सीमा तक कम करने के बजाय, काउंसिल ने कथित तौर पर “सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस” के नाम पर ₹14,000 वसूलना शुरू कर दिया.

SC: अधिवक्ताओं से “सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस” के नाम पर ₹14,000 की मांग को चुनौती दी गई है, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल से याचिका पर जवाब मांगा है,
क्या हैं मामला : शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि बार काउंसिल अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24 के तहत निर्धारित वैधानिक सीमा से अधिक नामांकन शुल्क नहीं ले सकती हैं सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए ₹750 और एससी/एसटी उम्मीदवारों के लिए ₹125 फैसले ने राज्य बार काउंसिलों और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को किसी भी अतिरिक्त राशि को वसूलने से भी रोक दिया था.
दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि पहले, यूपी बार काउंसिल नामांकन के लिए ₹16,500 लेती थी. फैसले के बाद राशि को वैधानिक सीमा तक कम करने के बजाय, काउंसिल ने कथित तौर पर “सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस” के नाम पर ₹14,000 वसूलना शुरू कर दिया.
क्या कहा पीठ ने : पीठ ने कहा, “प्रथम दृष्टया, उत्तर प्रदेश बार काउंसिल द्वारा जारी किया गया पत्र गौरव कुमार मामले में जारी निर्देशों के सीधे टकराव में है.” न्यायाधीशों ने यह भी सवाल किया कि 2024 में अदालत के स्पष्ट रुख के बावजूद ऐसी याचिकाएँ फिर से क्यों सामने आ रही हैं.
आपको बता दें इस साल की शुरुआत में, न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की एक अन्य पीठ ने दोहराया था कि न तो बार काउंसिल ऑफ इंडिया और न ही कोई राज्य बार काउंसिल नामांकन के स्तर पर वैधानिक शुल्क से अधिक राशि की मांग कर सकती है. फिलहाल के लिए यूपी बार काउंसिल को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करना होगा.