कोर्ट ने कहा कि समाजवाद का अर्थ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार द्वारा लाई गई आर्थिक नीतियों के चयन तक सीमित करने के बजाय समाजवाद को “राज्य की कल्याणकारी राज्य बनने की प्रतिबद्धता और अवसरों की समानता सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता” के रूप में समझा जाना चाहिए.
SUPREME COURT : सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई पीआईएल जिसमे भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद व धर्म निरपेक्ष को चैलेंज किया गया था. जिसको लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त शब्द ‘समाजवाद’ की व्याख्या केवल अतीत की निर्वाचित सरकार द्वारा अपनाई गई आर्थिक विचारधारा तक सीमित करके नहीं की जा सकती. कोर्ट ने कहा कि समाजवाद का अर्थ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार द्वारा लाई गई आर्थिक नीतियों के चयन तक सीमित करने के बजाय समाजवाद को “राज्य की कल्याणकारी राज्य बनने की प्रतिबद्धता और अवसरों की समानता सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता” के रूप में समझा जाना चाहिए.
चीफ जस्टिस ने ख़ारिज की याचिका : चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार द्वारा 42वें संशोधन के अनुसार संविधान की प्रस्तावना में “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा : भारतीय ढांचे में समाजवाद आर्थिक और सामाजिक न्याय के सिद्धांत को मूर्त रूप देता है, जिसमें राज्य यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी नागरिक आर्थिक या सामाजिक परिस्थितियों के कारण वंचित न रहे. समाजवाद शब्द आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लक्ष्य को दर्शाता है. निजी उद्यमशीलता और व्यवसाय और व्यापार के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करता है, जो अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत एक मौलिक अधिकार है.