एक बड़ी पूँजी से इस्त्राइल को समर्थित करना व एक मात्र देश जो पूरे मिडिल ईस्ट पर नज़र बनाये रखने का मात्र एक साधन सा दिखाई देता है, यह बात इस्त्राइल भी अच्छी तरह जानता है कि न चाहते हुए भी अमेरिका द्वारा उसका समर्थन अनिवार्य है.
MIDDLE EAST TENSION: इस्त्राइल और ईरान के बीच बढ़ती तनातनी ने पूरे मिडिल ईस्ट को एक बड़े युद्ध के मुहाने पर ला कर खड़ा कर दिया है, हालही मे हिज़बुल्लाह के कमाण्डर की मौत के बाद पूरा मिडिल ईस्ट सुलग सा रहा है, कुछ दिन पहले ईरान द्वारा इस्त्राइल पर किये गए बड़े मिसाइल हमले ने मिडिल ईस्ट में इस्त्राइल की एक तरफ़ा कार्यवाही को दरकिनार कर दिया हैं.
क्या हैं ईरान की ताकत : ऐसा माना जाता हैं कि ईरान मिडिल ईस्ट के कई छोटे और बड़े क्षेत्रीय गुटों को समर्थन देता हैं, जैसे ग़ज़ा में हमास, लेबनान में हिज़बुल्लाह, यमन में हूती शामिल हैं. इसके अलावा भी कई ऐसे गुट है जो ईरान सीरिया, इराक़ और बहरीन में एक्टिव है, जिसको ईरान का समर्थन प्राप्त हैं. जो ईरान की क्षेत्रीय ताकत को बढाती भी है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस्त्राइल को ईरान से युद्ध लड़ने के लिए ईरान की क्षेत्रीय ताकत से भी युद्ध लड़ना पड़ेगा, जो की कई मोर्चो पर एक साथ इस्त्राइल के लिए भी मुसीबत बन सकती हैं, भले ही उक्त क्षेत्रीय गुट टेक्निकल रूप से कारगर न हो लेकिन ज़मीनी युद्ध इस्त्राइल को भारी पड़ सकता है, लेकिन ऐसी स्थिति तब तक बनी रहने की संभावना है ज़ब तक कि अमेरिका व पश्चिम देश की कोई भी ताकत इस युद्ध में न उतरे.
क्या इस्त्राइल-अमेरिका की मज़बूरी : छिट पुट करते यह युद्ध पूरे मिडिल ईस्ट को अपने जद में ला कर खड़ा कर दिया है, ऐसे में सवाल यह है कि अमेरिका अपने आपको इस युद्ध में किस तरह से देखता है, कही इस्त्राइल को समर्थन देना अमेरिका की मज़बूरी तो नहीं? एक बड़ी पूँजी से इस्त्राइल को समर्थित करना व एक मात्र देश जो पूरे मिडिल ईस्ट पर नज़र रखने का अमेरिका के लिए मात्र साधन सा दिखाई देता है, यह बात इस्त्राइल भी अच्छी तरह समझ चुका है न चाहते हुए भी अमेरिका द्वारा समर्थन अनिवार्य सा है.
क्या इस्त्राइल की हार से अमेरिका पर असर : कही न कही अमेरिका भी इस बात को मानता हैं कि इस्त्राइल की कमज़ोरी का सीधा असर अमेरिका की सुपर पावर के ठप्पे पर पड़ेगा और इस्त्राइल की हार अमेरिका की हार मानी जाएगी, इसलिए अमेरिका पूरी संभावनाओ के साथ इस्त्राइल को समर्थित करेगा, जो अमेरिका की सुपर पावर के ठप्पा को बरकरार रखने में सहायक सिद्ध होगा.
क्या दूसरे मुस्लिम देशों को अमेरिका का डर : ऐसे में एक सवाल यह भी खड़ा हुआ हैं कि दूसरे मुस्लिम देश इस युद्ध के खिलाफ इस्त्राइल पर दबाव क्यों नहीं बनाते या खुल कर इस्त्राइल के खिलाफ क्यों नहीं बोलते, इससे साफ ज़ाहिर होता दिख रहा है कि मुस्लिम देशों को इस्त्राइल से किसी प्रकार का कोई डर नहीं है, डर हैं तो इस बात का कि अमेरिका से किसी भी नाराज़गी का परिणाम न भुकदना पड़े. इसलिए ऐसा कयास लगाया जा सकता हैं कि अब मुस्लिम देशों को भी कही न कही इंतज़ार है तो अमेरिका में होने वाले चुनाव का और उसमे सत्ता के परिवर्तन का तभी मिडिल ईस्ट की इस आग को बुझाया जा सकता है.
कौन हैँ मुस्लिम देश का नेता : मिडिल ईस्ट में बढ़ता तनाव एक तरह से राजनीतिक वर्चस्वता का भी है, हर मुस्लिम देश ग्लोबल वर्ल्ड में नेता तो बनना चाहता पर एक साथ एक मंच पर बोलने से कतराता है, चाहे ईरान हो या सऊदी अरब या तुर्की या फिर मिस्त्र जैसे देश किसी भी देश की मुस्लिम वर्ल्ड में बादशाहत स्वीकार नहीं करना चाहते, मान लेते है हर मुस्लिम देश मिडिल ईस्ट की टेंशन को ख़त्म करना चाहता हो पर वो और किसी देश को इसका श्रेय भी नहीं ले जाने देना चाहता. ऐसे में मिडिल ईस्ट की शान्ति को कब और कैसे बहाल किया जा सकता है कुछ भी कहना जल्दबाजी होंगी.