लोकसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां जातियों को साधने में जुट चुकि हैं और यह चर्चा दिलचस्प हो जाती हैं, जब हम यूपी की बात करतें हैं, क्योंकि यह वह राज्य हैं जो बताता हैं कि दिल्ली की कुर्सी पर कौन विराजमान होगा।
भारत में विकास के कार्य एक तरफ और लोकसभा के चुनाव से पहले जातिगत गठजोड़ एक तरफ, जी हां लोकसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां जातियों को साधने में जुट चुकि हैं और यह चर्चा दिलचस्प हो जाती हैं, जब हम यूपी की बात करतें हैं, क्योंकि यह वह राज्य हैं जो बताता हैं कि दिल्ली की कुर्सी पर कौन विराजमान होगा और यह तो जाति जुगाड़ से तय होता है। चुनाव से पहले सभी पार्टियां यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण बैठाने के लिए जुट चुकि हैं और यूपी की जाति का समीकरण जो बना ले गया, जीत उसी की तय मानी जाती हैं। आपको बताते चलें लोकसभा 2024 चुनाव के लिए सभी प्रकार के गठजोड़ शुरू हो चुके हैं। सभी पार्टियां फिर चाहें भाजपा, सपा, बसपा या कांग्रेस ही क्यों न हों, अपनी जीत पक्की करने के लिए जुगाड़ सेट करने में लग गई हैं।
समीकरण का खेल : लोकसभा या विधानसभा जो भी चुनाव हों, राजनीतिक पाटियां अपनी चुनावी रणनीति जातीय समीकरण को ही ध्यान में रखकर बनाती हैं। इस सम्बन्ध में पार्टियां जितना भी अपने विकास का दावा करें पर जातीय समीकरण के आगें सभी दावें फेल नज़र आते हैं।
कोई पार्टी पिछड़ा वर्ग व मुस्लिम को लेकर अपना समीकरण बनाती हैं, तो कोई दलित को लेकर राजनीतिक विरासत संभालती हैं, तो कई पार्टी अगड़ी जाति को लेकर अपना समीकरण साधती हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव की दृष्टि से यूपी की राजनीति में जातियों का खेल काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
यूपी में जाति : जानकारी के लिए आपको बताते चलें यूपी में 20 से 21 फीसदी वोट दलितों का है। यह वोट यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यूपी के अन्दर इस वोट को बसपा का वोट माना जाता रहा है, लेकिन 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसे काफी हद तक अपने पक्ष में कर लिया था, जिससे भाजपा की यूपी में भारी जीत भी हुई थी। अब अगर अगड़ी जाति की बात करें तो यह भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, जो कि कई जातियों में बंटी हुई है। अगड़ी जातियों में मुख्य रुप से ब्राह्मण, ठाकुर आदि आते हैं। इन वोटों पर सभी राजनीति पार्टियों की नजरें रहती हैं। यूपी की दृष्टि से देखें तो पिछड़ी जातियों का वोट और भी अहम हो जाता हैं, जो कि यूपी के लिए समीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
प्रतिशत का खेल : जहां दलितों का वोट बैंक 20 से 21 प्रतिशत है और अगड़ी जाति 18 से 20 प्रतिशत हैं। देखा जाए तो अगड़ी जाति भी चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका में होती हैं, वहीं पिछड़ी जाति के वोटों का प्रतिशत देखें तो करीब 50 प्रतिशत माने जाते हैं। इसमें यादव, कुर्मी व अन्य जातियों के लोग आते हैं। यहां पर सभी पार्टियों द्वारा अलग-अलग तरीकों से जातियों को साधने की पूरी कोशिश की जाती हैं। इन जातियों के खेल में मुस्लिम समाज की भूमिका और भी अहम हो जाती है, जिनकी संख्या 19 से 20 प्रतिशत मानी जाती हैं। जिनको रिझानें के लिए सपा, कांग्रेस, बसपा व अन्य द्वारा अलग-अलग पैंतरे आजमायें जाते रहें हैं।
पार्टियों की अलग-अलग राजनीति : सभी पार्टियों के अलग-अलग वोट बैंक माने जाते है। जैसे- सपा को पिछड़ी जाति का अगुवा माना जाता है, तो वहीं बसपा को दलित वोट बैंक की राजनीति करती हैं और अगर भाजपा पर नज़र दौड़ाई जाये तो इसको अगड़ी जाति के वोट के लिए जाना जाता है। इस समीकरण में आगें बढ़े तो यूपी में 19 से 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट और जाट वोट हैं। ये दोनों भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में पार्टियों के लिए अहम भूमिका निभाते हैं।
सभी दलों की नज़र : यूपी दलित और पिछड़ी जाति का वोट किसी भी पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दोनों वोट पर रहती हैं, सभी दल की नज़र।
इसीलिए कहा जाता हैं कि यूपी ही बताता हैं कि दिल्ली की गद्दी को कौन फतह करेगा, लोकसभा चुनाव की 80 सीटों की भूमिका के साथ सरकार को बनाने व बिगाड़ने में एक अहम रोल के साथ यूपी की बात की जाती हैं।
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