राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143 (1) के तहत 14 सवाल सुप्रीम कोर्ट को भेजे हैं. इनमें प्रमुख प्रश्न यह है कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक निर्णय टाल सकते हैं और क्या अदालतें इसके लिए समय सीमा तय कर सकती हैं. जिसको लेकर लगातार बहस जारी हैं.

SC : राज्यपाल की भूमिका पर उठे सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई. केंद्र ने दावा किया कि 1970 से अब तक राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित 17,150 विधेयकों में से 90 प्रतिशत को एक माह के भीतर राज्यपाल की मंजूरी मिल गई और मात्र 20 मामलों में ही अनुमोदन रोका गया. जिसके बाद ही इस तरह का डाटा देने पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति दर्ज की.
क्या कहा गया सॉलिसिटर जनरल से : इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा जब विपक्षी पक्ष को इस तरह के आंकड़े पेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी तो आपके लिए भी यह उचित नहीं है. इसके बाद केंद्र की ओर से मेहता ने कहा कि विपक्षी राज्यों का राज्यपाल को “पोस्टमैन” बताना गलत है. फिर वह कहते है कि राज्यपाल केवल एक पोस्टमैन नहीं हैं. यह व्याख्या संविधान की मूल भावना के विपरीत है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल को “रबर स्टांप” तक सीमित करना संविधान का अपमान है.
क्यों छिड़ी बहस: हालही में सुप्रीम कोर्ट के तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल केस के फैसले में इसकी झलक सी दिखायी पड़ती हैं. जिसमें अदालत ने कहा था कि राज्यपाल ने राज्य सरकार के 10 जरूरी बिलों को रोके रखा, यह अवैध और असंवैधानिक है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने राज्यपालों के अधिकार की सीमा तय कर दी थी और कहा बिल रोकना मनमाना कदम है और कानून के नजरिए से सही नहीं. राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को मदद और सलाह देनी चाहिए थी. बेंच ने यह भी कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है. इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के लिए बिल पर काम करने की टाइमलाइन तय करते हुए कहा कि विधानसभा से पास बिल पर राज्यपाल तीन महीने के भीतर कदम उठाएं. राज्यपालों को निर्देश दिया कि उन्हें अपने विकल्पों का इस्तेमाल तय समय-सीमा में करना होगा. वरना उनके उठाए गए कदमों की कानूनी समीक्षा की जाएगी. कोर्ट कहती हैं कि राज्यपाल बिल रोकें या राष्ट्रपति के पास भेजें. उन्हें यह काम मंत्रिपरिषद की सलाह से एक महीने के अंदर करना होगा. विधानसभा बिल को दोबारा पास कर भेजती है, तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी.
राष्ट्रपति के 14 सवालों पर बहस : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143 (1) के तहत 14 सवाल सुप्रीम कोर्ट को भेजे हैं. इनमें प्रमुख प्रश्न यह है कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक निर्णय टाल सकते हैं और क्या अदालतें इसके लिए समय सीमा तय कर सकती हैं. जिसको लेकर लगातार बहस जारी हैं.