युद्ध की नई दुनियां 

युद्ध के तरीकों ने हर देश के सामने एक नई चुनौती सी खड़ी कर दी हैं। क्‍या युद्ध की निर्भरता भी टेक्नोलॉजी बेस्ड बनती जा रही है कहीं युद्ध किसी कमरे के भीतर से तो नहीं लड़ा जा रहा, जिसे बड़ी आसानी से अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, इस तरह के तमाम सवालियां निशान आज भी खड़े हैं? 

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हालही में हुए पेंजर धमाके ने कई तरह के सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं, वो कहते हैं न इश्क़ व जंग में सब कुछ जायज़ है जी हां कुछ ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला लेबनॉन में जहाँ पर पेंजर में हुए धमाके ने सबका ध्यान इस ओर आकृषित कर दिया। अब इस तरह के हमलों से बचाव के उपाय भी ढ़ूढे जाने लगे हैं। पर सवाल यह हैं कि धमाका कैसे हुआ व आखिर क्या कारण हो सकते है इस धमाके के पीछे? क्या पेंजर में बम था या ऐसी कोई चिप थी, जिसे ब्लास्ट किया जा सकता है, क्या किसी देश ने ऐसा किया? ऐसे अनेको सवाल हर किसी के मन में खड़े होने लगे है। हालांकि कई लोगो का ऐसा भी मानना है कि दूसरे देश से मंगवाए गए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में पहले से विस्फोटक था, फिलहाल तो यह एक जाँच का विषय है।

चलिए समझते हैं कैसे युद्ध में बदलाव सम्‍भव? प्राचीनकाल से नज़र डाले तो राजाओं और महाराजाओं द्वारा ज़मीनी तौर पर युद्ध पर पकड़ बनाने पर ज्यादा ध्‍यान दिया जाता था या भौतिक तौर पर कब्ज़ा बनाये रखना उनका प्रथम उद्देश्‍य होता था, जिसमे तलवार, धनुष, घोड़ो आदि का इस्तेमाल कर जंग को अंजाम तक पहुंचाया जाता था। मौजूदा समय में भी कुछ ऐसा ही हैं पर अत्‍यधिक टेक्‍नोलॉजी के इस्‍तेमाल ने कई तरह के सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं। युद्ध के तरीकों ने हर देश के सामने एक नई चुनौती सी खड़ी कर दी हैं। क्‍या युद्ध की निर्भरता भी टेक्नोलॉजी बेस्ड बनती जा रही है कहीं युद्ध किसी कमरे के भीतर से तो नहीं लड़ा जा रहा, जिसे बड़ी आसानी से अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, इस तरह के तमाम सवालियां निशान आज भी खड़े हैं?

पेंजर में हुआ धमाका : हालही में हिजबुल्लाह के सदस्यों की ओर से इस्तेमाल पेजर में लेबनान और सीरिया में एक साथ धमाके हुए। इस घटना में कई लोगों के मारे जाने के साथ कई हज़ार लोग के घायल होने की खबर हैं। हिज्बुल्लाह और लेबनान की सरकार ने इस हमले के लिए इस्‍त्राइल को जिम्‍मेदार ठहराया। लेकिन इस तरह के हमले ने सभी देशों को युद्ध की नीति नये सिरे से बनाने पर जोर दे दिया हैं, और कई तरह के और भी सवालिया निशान खड़े कर दिए है। कई जानकारों का कहना है कि यह एक रिमोट हमला हो सकता है या पेजर में कम मात्रा में विस्फोटक छिपाकर रखा गया था, पर अभी भी सबसे बड़ा सवालिया निशान इस बात का है कि क्‍या इस तरह के हमले का शिकार और कोई देश भी हो सकता हैं?

बढ़ता टेक्‍नोलॉजी का दायरा : अगर ये मान भी लिया जाये इस हमले को इस्‍त्राइल ने उच्च तकनीक की टेक्नोलॉजी के माध्यम से अंजाम दिया, तो आने वाले समय में युद्ध कितने आसान दिखने लगेंगे यानी उच्च तकनीक वाला देश ही विश्व में बादशाहत हासिल करेगा, अगर ऐसा हैं तो किसी भी देश के रक्षा विभाग को भी बड़ी आसानी से प्रभावित किया जा सकता हैं या किसी देश की सेना द्वारा इस्तेमाल करने वाली टेक्नोलॉजी को भी खत्‍म कर युद्ध परिणाम तक आसानी से पहुंचा जा सकता हैं।

कैसे हो सकता है विस्फोट : रेडियो फ्रिक्वेंसी पर चलने वाले पेजर को जिसमे न जीपीएस होता है और न ही कोई आईपी एड्रेस, इसलिए लोकेशन ट्रेस कैसे, क्‍योंकि इसका पता लगाना आसान नहीं? लेबनान में हर वो शख्स विस्फोट का शिकार हुआ जो पेजर रखे हुए था। मामला पेजर तक नहीं रुका बल्कि रेडियो वॉकी-टॉकी जैसे दूसरी कम्युनिकेशन डिवाइस फटने की बातें सामने भी आईं और इस धमाकों का शक इस्राइल पर जताया जाने लगा। इन विस्फोटों को लेकर पूरी दुनिया भी हैरान है। वायरलेस उपकरणों में सीरियल विस्फोटों के बाद कई घरों, दुकानों व वाहनों में भी आग लग गई। एक तरह से पूरा क्षेत्र विस्फोटों की जद में आ गया। अब लोग इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के उपयोग को लेकर भी डरे हुए हैं।

पेंजर जैसे गैजेटस में विस्‍फोट होना एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है, और कई देशों के लिए बड़ी चुनौती देता दिखाई देता हैं। फिलहाल इसके केवल कयास लगाये जा सकते हैं कि इस काम को अंजाम देने के लिए एक विशेष प्रकार की रेडियों फ्रीक्‍वेंसी को भेजकर भी किया जा सकता हैं, इस तरह के हमले को रोकने के लिए एक बैंड पास फिल्‍टर का उपयोग किया जा सकता हैं, जो केवल एक निश्चित फ्रिक्‍वेंसी रेंज को ही अनुमति देता है, और अन्‍य को ब्‍लॉक कर देता है। इसमें नैरो बैंड पास फिल्‍टर या ट्यून्‍ड सर्किट का इस्‍तेमाल किया जा सकता है व एसडीआर जैसी तकनीकी साफ्टवेयर के माध्‍यम से आवृत्तियों को गतिशील रूप से ट्यून करने में सहायक सिद्ध होती हैं। 

तेजस्‍वी सिंह, टेक्‍निकल एक्‍सपर्ट 

सवाल यह हैं कि क्‍या पेजर में लगी लीथियम बैटरी को शक के दायरे में लाया जा सकता है जो अत्यधिक गर्म होने पर फट सकती है? मगर आशंका को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता पेजरों को बनाने के वक्त ही इनमें विस्फोटक छुपाया गया हो, जिससे सप्लायर अनजान हो? साजिश को बहुत बड़ी माना जा सकता हैं, जिसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। वजह कुछ भी रहीं हो ऐसी तमाम बातों की पर्तों को खुलने में वक्त लगेगा। आखिर ऐसी कौन-सी रासायनिक शृंखला प्रतिक्रिया को अंजाम दिया गया जो अलग-अलग और काफी दूर-दूर तक ट्रिगर में बदल गई?

क्‍या हैं कयास : फिलहाल केवल कयास ऐसे लगाये जा सकते हैं। रेडियो नेटवर्क से संचालित पेजर पर ऐसा कौन-सा सिग्नल भेजा गया जो बैटरियां गर्म हुईं और इतनी कि साथ रखे डिवाइस में घातक विस्फोटक फटे। यहां एक सच जरूर है कि कुछ महीने पहले थोक में खरीदे पेजर ही फटे। ऐसे में उनमें खतरनाक ज्वलनशील विस्फोटक को छुपाने की थ्योरी जरूर बनती है। सच के लिए इंतजार करना होगा। लेकिन एक सवाल आपके और हमारे दिमाग में अभी हैं कि अब मोबाइल या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स कितने सुरक्षित हैं?

युद्ध की नई तकनीक रूपी पेजर अटैक ने दुनियाभर के कम्युनिकेशन सिस्टम को बहुत बड़ी चुनौती दे डाली। रेडियो वेव से चलने वाले हजारों पेजर्स व वॉकी-टॉकी में हुए विस्फोट संचार क्रांति के लिए बड़ी चुनौती जरूर हैं। इसका भी डर है कि ऐसी घटनाओं की सूचनाएं कब कहां से आने लगें। दुनियाभर में घर-घर उपयोग हो रहे तमाम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स वजह-बेवजह शक के दायरे में आ गए हैं।

क्या बढ़ेगी आत्मनिर्भरता : क्‍या इस घटना के बाद इलेक्ट्रॉनिक गैजेटस से देशों का विश्वास उठेगा? क्‍या अब बाहर से मंगाए गैजेटस से देशों का विश्वास उठेगा? क्योंकि कई रिपोर्ट्स का यहाँ तक भी कहना है कि डिवाइस में विस्फोटक लगा हुआ था। ऐसे में अब हर देश खुद ही इलेक्ट्रॉनिक गैजेटस बनाने पर विचार करने लगेंगे। क्‍या हर देश आत्मनिर्भरता को अपना हथियार बनायेंगे? जी हां अब ऐसा ही कुछ देखे जाने की सम्‍भावना बताई जा रही है, हर देश इलेक्‍ट्रानिक उत्‍पाद को अपना हथियार बनाने की जद्दोजहद में लगा रहेगा, लेकिन यह इतना आसान भी नही होने वाला हैं, पर अपने देश के सुरक्षा कवच को बनाएं रखने के लिए हर देश की आत्‍मनिर्भरता मजबूरी भी बनेगी, चाहे मोबाइल हो या लैपटॉप हर इलेक्‍ट्रानिक वस्‍तु के बनाने की होड़ तेजी से बढ़ेगी।

MOHAMMAD TALIB KHAN

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