मात्र 50 देशों के हस्ताक्षर से तैयार की गयी संयुक्त राष्ट्र नाम की यह संस्था व सुरक्षा परिषद् में मात्र 5 पांच स्थाई सदस्य सदस्यों से शुरू यह संस्था, वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में 190 से अधिक देश इसके सदस्य, तो सवाल उठता हैं, इतने देश हो जाने के बावजूद सुरक्षा परिषद् में मात्र 5 देश ही क्यों बने हुए हैं?
एक नाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का, क्या इसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा हैं या इसमें बदलाव की मांग उठने लगी हैं, भारत जैसे देश ने अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से बार-बार सुरक्षा परिषद् में सुधार को लेकर आवाज़े उठाई हैं। आपको बताते चलें, एक सौ नब्बे से अधिक देशों के समूह से बना संयुक्त राष्ट्र संघ जिसके अस्तित्व पर खतरा सा मंडराने लगा है या यूं कहें एक पंगू सी बन चुकि संस्था उसकी शाखाएं जो केवल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच देशों के इर्द-गिर्द घूमती नज़र आती हैं, यही पांच देश विश्व में अपनी-अपनी धुरि को लेकर नाचते या दूसरे देश के खिलाफ एक वर्चस्व के रूप में अपने आप को दिखाना पसंद करते हैं, तो सवाल यह भी हैं कि इन पांच देश के अलावा क्षेत्रीय ताकत को सम्मान नहीं मिलना चाहिए, विश्व की इस धुरि में समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र हो या सुरक्षा परिषद के प्रभाव या सक्षमता पर भी सवाल खड़े होते रहें हैं, कहीं इन संस्थाओं का प्रयोग केवल राजनीतिक तो नहीं, यह संस्था देशों के बीच समस्या को सुलझानें में कितनी कारगर बची हुई हैं या इन संस्था पर किन देशों का कितना विश्वास बचा हैं, यह समझने की कोशिश करेंगें।
क्यों ज़रूरत पड़ी संयुक्त राष्ट्र संघ की : महाविनाशकारी प्रथम विश्व युद्ध देखा जा चुका था और द्वितीय विश्व युद्ध में अपार जन धन की हानि को देखते हुए और बहुत से देश काफी साल पीछे चलें गये, इसलिए द्वितीय विश्व युद्ध के विजयी देशों ने आगे ऐसे विनाशकारी युद्ध को रोकने या देशों के आपस में समन्वय बनाये रखने के लिए इस संस्था का निर्माण किया, वही संयुक्त राष्ट्र के मुख्य कार्यों पर नज़र डाले तो अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के साथ राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध को बनाएं रखना हैं, आज उसी संयुक्त राष्ट्र पर सवालिया निशान खड़ा होता जा रहा हैं, क्या वह अपने कार्यों में कारगर साबित हो रही हैं या बदलाव ही एक मात्र रास्ता हैं?
विश्व की पांच धुरि : विश्व धुरि केवल यूएनएससी के पांच देशों के इर्द-गिर्द नाचती नज़र आती हैं, अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं पर कब्जा पांच धुरियों का हैं या यह धुरि यूरोप के करीब देखने को ज्यादा मिलती हैं, तो सवाल बार-बार उठता हैं, क्या यह विश्व पांच देशों का हैं या इन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में अब बदलाव करने का समय आ गया हैं या यह कहनें का समय आ गया है, कि इन पांच देशों की समस्याएं विश्व की समस्याएं नहीं हैं, अगर सवाल यह है कि इन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में कितनी क्षमता बची हुई है, कि देशों के बीच आपसी समन्वय बनाने में कारगर हैं, तो इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हमारे पास रूस और यूक्रेन व इस्त्राइल और हमास युद्ध में देखने को मिलता हैं, इन उदाहरण के बाद भी क्या इन संस्थाओं पर विश्वास बचेगा।
जब बनी थीं संयुक्त राष्ट्र संस्था : द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व को संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था की ज़रूरत महसूस हुई, जिस कारण सैन फ्रांसिस्को में 25 अप्रैल, 1945 को पचास देशों का सम्मेलन हुआ, जानकारी के लिए बता दें संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था तैयार करने के लिए सैन फ्रांसिस्को से पहले और भी कई बैठकें हुई थी, सैन फ्रांसिस्को की बैठक में पांच बड़े राज्यों के वीटों के अधिकार पर लम्बी बहस भी हुई, सभी मामलों पर लम्बी बहस के बाद सभी बिन्दुओं पर सहमति लगभग बन चुकि थी, अन्तिम सत्र 25 जून, 1945 संयुक्त राष्ट्र चार्टर एक मत में पास किया गया, 26 जून, 1945 को 50 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर कर दिया गया, पोलैण्ड ने 15 अक्टूबर, 1945 को चार्टर पर हस्ताक्षर किया, इसी के साथ चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की संख्या 51 हो चुकि थी और संयुक्त राष्ट्र 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आया। संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण संस्था में से एक सुरक्षा परिषद् का नाम चर्चा का विषय बना रहता हैं, क्यों कि इसमें केवल 15 सदस्य ही होते हैं, जिसमें 5 स्थाई यानी चीन, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन व फ्रांस हैं, जो की पूरी तरह से स्थाई हैं यानी यह सदस्य हमेशा रहेंगे। 10 सदस्य वह हैं जो अस्थाई होते हैं, मतलब हर दो साल में पांच सदस्य का कार्यकाल खत्म होता हैं, उसकी जगह नए सदस्य आ जाते हैं।
सुधार की ज़रूरत : मात्र 50 देशों के हस्ताक्षर से तैयार की गयी संयुक्त राष्ट्र नाम की यह संस्था व सुरक्षा परिषद् में मात्र 5 पांच स्थाई सदस्य सदस्यों से शुरू यह संस्था, वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में 190 से अधिक देश इसके सदस्य, तो सवाल उठता हैं, इतने देश हो जाने के बावजूद सुरक्षा परिषद् में मात्र 5 देश ही क्यों बने हुए हैं? केवल 5 देशों के पास किसी ताकत की सर्वोच्चता होना कितना ठीक हैं? इन पांच देशों के समूह के इर्द-गिर्द नाचती दुनियां यह कितना सही हैं, क्या जिस उद्देश्य के लिए इन संस्था का जन्म हुआ था, वह कारगर सिद्ध हुई हैं? चाहें हाल की रूस व यूक्रेन समस्या हो या इस्त्राइल व हमास युद्ध हो कई कोशिशों के बाद भी यह संस्था हो रहें युद्ध को खत्म करवानें में कारगर साबित नहीं हो पाई हैं। तो इसीलिए एक बार फिर से सवाल खड़ा होता हैं कि सुरक्षा परिषद् में सुधार कब तक?
सुधार के लिए तर्क : कुछ तर्क के माध्यम से समझें तो विश्व की सबसे बड़ी आबादी रखने वाले भारत के लिए कितना जरूरी हो जाता हैं, सुरक्षा परिषद् में स्थाई प्रतिनिधित्व या दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी का यानी मुस्लिम देश की ओर से भी सुरक्षा परिषद् में किसी तरह का स्थाई प्रतिनिधित्व नहीं हैं या अन्य तर्कों से इसकों समझें तो दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप यानी अफ्रीका महाद्वीप से भी कोई देश स्थाई रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करता, अकेले यूरोप से तीन सदस्य देश सुरक्षा परिषद् में स्थाई प्रतिनिधित्व करते हैं, इसीलिए हर देश की समस्या को रखने के लिए यह और भी जरूरी हो जाता हैं कि सुरक्षा परिषद् में सुधार हो, यदि सुधार होता हैं, तो सवाल एक बार फिर वहीं आकर रूक जाता हैं कि क्या भारत या जापान की स्थाई सदस्यता चीन को स्वीकार होगी, क्योंकि सुरक्षा परिषद् में किसी भी सुधार के लिए पांच स्थाई सदस्यों की सहमति भी जरूरी हैं।
मौजूदा समय पर ध्यान दिया जाय तो अब स्थितियां 1945 वाली नहीं हैं, पचास सालों में बहुत से देशों ने अपनी क्षेत्रीयता को विकसित किया हैं, क्या उन क्षेत्रीय ताकत का सम्मान नहीं होना चाहिए या अभी भी विश्व पांच देशों द्वारा बताए गये रास्ते पर चलने के लिए कितना तैयार दिखता हैं, यह भी सोचने वाली बात हैं। इस सम्बन्ध में भारत द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मंच से सुरक्षा परिषद् में सुधार की वकालत की जाती रहीं हैं।
रायसीना डायलॉग : हांलही में आयोजित हुए रायसीना डायलॉग में भारतीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने कहा था, कि संयुक्त राष्ट्र में बदलाव की भावनायें बहुत मज़बूत हैं, लेकिन कुछ हलको से इसके लिए सहमति प्राप्त करना चुनौती है, यदि आप 5 देशों से यह पूछने जा रहे हैं कि क्या आप उन नियमों को बदलने पर विचार करेंगे, जिससे आपकी शक्ति कम हो जाएगी तो अनुमान लगाए उत्तर क्या होगा, यदि वो समझदार हैं तो उत्तर कुछ और होगा, यदि वें कम दूरदर्शी हैं तो जवाब वही होगा जो हम आज देख रहे हैं।