अश्लील कंटेंट के प्रकाशन पर क्या कहते हैं, हमारे कानून?

हमारी नैतिकता में बड़ा परिवर्तन होता दिख रहा हैं, बता दें पिछले कुछ समय से मनोरंजन के नाम पर टेलीविजन, इन्टरनेट तथा अन्य ऐसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अश्लील सामग्री फैलाते देखे जा सकते हैं, जो युवाओं में फैलती एक कमज़ोर कड़ी के रूप में दिखाई देती हैं.

सूचना के इस युग में मीडिया एक प्रमुख या जरूरी माध्यम बन गया है, नई-नई जानकारियों को जुटाने का, इसीलिए कहा जाता है कि जिन माध्यमो से जानकारी को जुटाया जाता है, उन माध्यमों पर कुछ ऐसा प्रकाशित नहीं करना चाहिये, जिससे जनता या यूँ कहे समाज को बनाने वाले युवाओं का दिमाग भ्रष्ट हो. इसलिए मीडिया की प्राथमिकता इस ओर बढ़ती हैं कि भ्रामक, विकृत अपमानजनक या अश्लील विषय-सामग्री प्रस्तुत करने से दूर रहे.

बदलती आधुनिक दुनियां : अगर ध्यान दें तो पिछले कुछ समय से हमारी नैतिकता में बड़ा परिवर्तन होता दिख रहा हैं, बता दें पिछले कुछ समय से मनोरंजन के नाम पर टेलीविजन, इन्टरनेट तथा अन्य ऐसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अश्लील सामग्री फैलाते देखे जा सकते हैं, जो युवाओं में फैलती एक कमज़ोर कड़ी के रूप में दिखाई देती हैं. इसी सम्बन्ध में हम आज समझेंगे अश्लील सामग्री पर क्या कहते हैं, हमारे कानून.

अश्लीलता पर क्या कहते हैं, हमारे कानून: सामान्यतया अश्लीलता को हम आसान भाषा में समझने की कोशिश करें तो हमारा तात्पर्य ऐसे कार्य से है, जो आपत्तिजनक रूप से अश्लील है, जो शुचिता या सलज्जता के प्रति अपमानजनक हो, दिमाग को कुछ ऐसा अभिव्यक्त या प्रस्तुत करना या कुछ ऐसा देखना जिसे भद्रता, शुचिता तथा शालीनता द्वारा अशुद्ध होने के कारण निषेध करता है, जैसे अश्लील भाषा, अश्लील तस्वीर, अशुद्ध, अशालीन, अपवित्र, व्यभिचारी आदि 

अश्लीलता पर सांविधानिक प्रतिबंध : सबसे पहले संविधान में दिए वाकू एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर चर्चा, जिसमें प्रेस की स्वतन्त्रता भी सम्मिलित होती हैं. प्रेस और मीडिया को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है और इस स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध भी लगाया जा सकता हैं, चलिए हम यह भी समझते हैं कि इन पर प्रतिबन्ध कब लगता हैं, भारत के संविधान में आर्टिकल 19(1) (क) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तो देता है पर आर्टिकल 19(2) इन स्वतन्त्रताओं के अपवाद भी देता है, यानी ऐसे बहुत से कारण हो सकते है, जिनके अधीन राज्य द्वारा वाक् एवं अभिव्यक्ति के अधिकार पर रोक लगाई जा सकती हैं, आपको बताते चले आर्टिकल 19(2) के अनुसार राज्य को शालीनता तथा नैतिकता के आधार पर वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता यानी मीडिया के माध्यम से प्रदर्शित करने पर रोक लगाने से नहीं रोका जा सकता है.

विधायी यानी कुछ एक्ट के प्रावधान जो अश्लील सामग्री दिखाने पर लगाते हैं रोक : ऐसे में हमारे पास कुछ और एक्ट हैं, जिनका काम सार्वजनिक यानी पब्लिक में शालीनता एवं नैतिकताओं का संरक्षण करना आवश्यक है, इसलिए आपको बता दें संविधानिक कानून के अलावा ऐसे कई एक्ट जो अश्लीलता से भरी सामग्री को दिखाने पर प्रतिबन्ध लगाते हैं.

(क) भारतीय दण्ड संहिता : भारतीय दण्ड संहिता यानी IPC अश्लीलता का निषेध करती है. IPC की धारा 292 से 294 तक सामान्यतया तथा विशेषकर युवा व्यक्तियों को अश्लील साहित्य एवं प्रकाशनों के विक्रय आदि को एक तरह से संज्ञेय अपराध बनाकर सार्वजनिक नैतिकताओं को एक तरह से सिक्योरिटी प्रदान करती हैं.

(ख) स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986 : इस कानून का आशय प्रकाशन या विज्ञापन द्वारा जिसमें जनता के दिमाग एवं आचरणों को भ्रष्ट किया गया हो, यह एक्ट स्त्री के अशालीन रूपण को दिखाने से एक तरह से रोक लगाता है. अगर इस कानून की प्रस्तावना पर बात करें तो यह अधिनियम विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखों, चित्रकारी, आकारों या अन्य किसी तरीके से स्त्रियों के अश्लील रूपण पर रोक लगाने के लिए हैं.

(ग) चलचित्र अधिनियम, 1952 : यह एक्ट फिल्मों के प्रमाणन के लिए बनाया गया था. यह एक्ट एक बोर्ड के गठन के लिए या प्रमाणीकरण बोर्ड के लिए प्रावधान करता हैं यानी वह बोर्ड जो फ़िल्म बनने के साथ इस बोर्ड द्वारा देखे जाने के बाद सर्टिफिकेट देता हैं, जिससे कि पब्लिक में फ़िल्म को रिलीज़ किया जा सके और इसे सार्वजनिक विचारों यानी पब्लिक में दिखाने के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र प्रदान किया जा सके, बता दें कोई फिल्म सार्वजनिक प्रदर्शन हेतु प्रमाणित नहीं की जायेगी, यदि प्रमाणपत्र या सर्टिफिकेट देने वाले सक्षम अधिकारी का मत है, कि फिल्म या इसका कोई भी भाग भारत की प्रभुसत्ता या अखण्डता के हित, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से दोस्ताना सम्बंधों, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता के विरुद्ध है.

(घ) सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 : इस अधिनियम की धारा 67 ऐसी किसी सूचना को प्रकाशित करने को दण्डनीय बनाती है, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील है. इस धारा के अनुसार जो भी किसी ऐसी विषय-सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित करता है या प्रकाशित करवाता है, जो कामोत्तेजक या विषयासक्त बनाता है, इसका प्रभाव ऐसा हो, जो उन व्यक्तियों के दिमाग को भ्रष्ट कर सकता है, जिनके विषय को पढ़ने, देखने या सुने जाने की सम्भावना है.

MOHAMMAD TALIB KHAN

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