न्याय में अत्यधिक विलम्ब होने लग गया है और साथ में अत्यन्त खर्चीला भी हो गया है, ज़ब कई सालो तक न्यायालय के चक्कर लगाते लगाते पक्षकार थक जाते हैं.
LOK ADALAT: कहा जाता हैं न कि देर से मिला न्याय नहीं के बराबर होता है या देर से मिले न्याय का क्या फ़ायदा, हर कोई आशा करता हैं कि न्याय उसको समय पर मिले या कहते हैं न कि विलम्ब न्याय को विफल कर देता है, बहुत से लोग ऐसा भी मानते हैं कि विलम्ब से मिले न्याय की सार्थकता एवं प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है.
विलम्ब से मिलता न्याय : न्याय में अत्यधिक विलम्ब होने लग गया है और साथ में अत्यन्त खर्चीला भी हो गया है, ज़ब कई सालो तक न्यायालय के चक्कर लगाते लगाते पक्षकार थक जाते हैं, कई बार तो ऐसा हो जाता हैं कि वादी मर जाता है, पर वाद अमर रहता है. ऐसे में हर किसी की न्याय के प्रति उम्मीद कम होने लगती हैं.
क्यों बनी लोक अदालत : जल्दी न्याय के लिए यह प्रयास किया जाने लगा कि न्याय एक तो सस्ता हो, सुलभ एवं त्वरित हो, बता दें इसी कारण ने लोक अदालत की सोच को जन्म दिया, क्यूंकि आज जगह-जगह लोक अदालतें आयोजित की जाने लगी हैं, जिससे लोगो को न्याय जल्दी और आसान तरीके से मिल सके. लोक अदालत में मामले का निपटारा आपसी समझौतो, राज़ीनामो आदि द्वारा आसानी से किया जा सकता हैं, इससे फ़ायदा यह होता हैं कि समय ख़राब नहीं होता हैं व खर्चीला भी नहीं होता हैं.
मामलो के निपटारो में न्यायिक अधिकारी, शिक्षक व समाजसेवी अपनी भूमिका निभाते हैं, लोक अदालत में यात्रियों, डाक तार, बीमा जैसे विवादों का निपटारा करना होता हैं.