किसी अन्य एकल जज द्वारा आरोप को जमानत देने के आदेशों पर पुनर्विचार करने का कार्य अनावश्यक हैं और घोर अनुचित्ता के समान हैं
MADHYA PRADESH HIGH COURT: हाई कोर्ट के एक मामले में न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ नें पाया कि हाई कोर्ट के एकल जज द्वारा उसी हाई कोर्ट के किसी दूसरे एकल जज द्वारा आरोप को दी गयी, जमानत रद्द करने में क्षेत्राधिकार का प्रयोग न्यायिक औचित्य हीनता और अनुशासनहीनता हैं, वह भी आरोप के गुणदोष की जांच करने के बाद
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट नें : किसी अन्य एकल जज द्वारा आरोप को जमानत देने के आदेशों पर पुनर्विचार करने का कार्य अनावश्यक हैं और घोर अनुचित्ता के समान हैं.
SC नें सवाल किया कि जमानत रद्द करने की मांग करने वाला आवेदन अपीलकर्ताओ को जमानत देने वाले एकल जज के अलावा दूसरे एकल जज के समक्ष कैसे सूचीबद्ध किया गया, क्यूंकि उल्लंघन के विपरीत मेरिट के आधार पर जमानत रद्द करने का आवेदन दायर किया गया, जमानत आदेश की शर्तो को उसी एकल जज के समक्ष रखा जाना चाहिए, जिसने आरोपी को जमानत दी थी.
जानकारी के लिए आपको बताते चले 14 सितंबर 2022 को एकल जज द्वारा आरोपी को जमानत दी गयी थी, हालांकि अभियोजन की तरफ से जमानत रद्द करने का आवेदन दूसरे एकल जज के समक्ष सूचिबद्ध किया गया.